नदी का मर जाना

नदी के कगार पर 
कई सभ्यताओं ने आँखें खोली 
कल कल के इस नाद में
कई संस्कृतियों ने लोरी महसूस की

न जाने कितने नाजुक पाँवों की पायलिया
इस पानी में छम छम करती
प्रेम कहानियाँ लिख गई

इसके किनारे कई बेटों ने चलना सीखा
कई बाप अंतिम बार
बेटों के कंधों आरूढ़ हो अंतिम यात्रा हेतु आए

नदी ने श्याम को
गोपियों के वस्त्रों को छिपाते देखा है  
नदी ने देखा है काल का हर वो वार
जो लील गया कई सभ्यताओं को
नदी ने देखा है बादलों के माध्यम से
स्वयं का स्वयं में मिल जाना

बचपन में सोचता जहाँ गाँव होते है 
वहां नदी और तालाब क्यों होते है 
अब कहता फिरता हूँ
ये गाँव और नगर है
जब तक नदी और तालाब है। 

इन्हें संभालना होगा क्योंकि 
एक नदी की मौत में
सैकड़ों सभ्यताएँ सती हो जाती है। 


तारीख: 02.07.2017                                    विनोद कुमार दवे









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है