दर्द कल फिर चुपके से आया
मेरे पहलु में देर रात ठहरा ...
मुझे सोया जानकर करवटें बदलता रहा रात भर ,
सुबह लौट गया चुपचाप मेरे सहन से ....
उसका आना जाना रहता है मेरे आँगन में अक्सर ...
अब खूब जान पहचान हो गई है उससे ...
कई बार तो देर तक बातें करते हैं दोनों हमजोली
और कभी खेलता है वो मुझसे आँख मिचौली ....
मेरे घर में उसने भी अपना बसेरा बना लिया
दुनिया से हैरान परेशान हो आ जाता है मेरे पास ....
कभी कभी
उसका अचानक आना डरा ही देता है मुझे ...
क्योंकि वह भेष बदलकर आता है छलिया है ,
पर मैं भी उसे पहचान ही लेता हूँ
थोड़ी मसक्क्त के बाद ...
उसका मुझसे पुराना याराना जो है ....
दर्द कल फिर चुपके से आएगा ...