धागा

वक़्त ने बैठकर मेरे दिल में,
मेरी भावनाओं का धागा बुना
रंग के फिर प्यार के रंग में इसे,
नाम इस पर तेरा मेरा लिखा

प्यार भरे इस धागे का एक सिरा,
मेरे दिल से जुडा,
और दूसरा तेरी ओर गया

पकड़ना चाहो गर वो सिरा तुम,
तो पकड़ लो इसे अभी,
यह खुद खीचा हुआ,
साथ तुम्हारे जाएगा

जाओ तुम जाओ कहीं,
ख़त्म न यह हो पायेगा
है मुझे पूरा यकीं,
साथ उम्र भर का यह निभायेगा

बाद पकड़ने के इसे जो छोड़ दोगे,
तब यह धागा उलझ जायेगा
फिर तुम्ही बतलाओ भला,
फिर कौन इसे सुलझायेगा?

वक़्त सुलझा भी दे गर इसे,
पड़ चुके कई जोड़ होंगे
रिश्तों में आ चुके,
तब तक कई मोड़ होंगे

मानते हो तुम भी यह,
गाँठ तो फिर भी गाँठ है
सच्चे प्यार पर तो आंच है..
इसलिये मै हूँ कहती,
अगर नहीं हो यकीं..

उम्र भर थामने का,
तो कोई बात नहीं
बस वह दूसरा सिरा,
तुम मुझे लौटा दो अभी

सीधे से प्यार जैसा,
सीधा धागा है अभी
समेट लूंगी मै इसे,
न उलझने दूँगी
अपने अरमानो को ,
मै न बिखरने दूँगी

बहूत अज़ीज़ है चुकीं,
मुझमे जज्बात मेरे
जिगर के टुकड़े हैं,
धागों में बसे ख्वाब मेरे

करो भरोसा मेरा,
सिमटे हुए इस धागे में भी
उम्मीद होगी..
इंतज़ार होगा..
पुकार होगी..
प्यार होगा..
और रहते दम तक इन धागों पर..
लिखा बस तेरा नाम होगा।।


तारीख: 02.07.2017                                    श्वेता उपाध्याय









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