धागा
वो पतला-सा काला धागा;
जो माँ ने प्यार से मन्नत में बांधा;
जो हर बलाओं से मुझे बचाता;
आज भी मेरी नज़र उतार जाता...
वो शगुन-का लाल धागा;
जो पिता ने आशीर्वाद से,उन्नति के लिए बांधा;
जो हर ऊंचाइयों पर मुझे पहुँचाता;
आज भी हर मुकाम पर सफलता दिलाता...
वो प्यार-का रक्षा का धागा;
जो भाई ने भी, मुझे बांधा;
जो रक्षा सूत्र कहलाता;
आज भी मन को बहुत भाता...
वो प्रेम का काले मोतियों का धागा;
जो प्रियतम तुमने, मेरे गले में विश्वास-से बांधा;
जैसे प्रीत हो कृष्ण और राधा;
जैसे इश्क हो चाँद सा आधा...