एक नन्ही परी

बचपन में देखी थी एक नन्ही परी

मुस्कुराती थी ऐसे जैसे हो कोई खिलती कली

मां की तो लाड़ली प्यारी गुड़िया थी वो

घर आंगन को महकाती जैसे फूलों की बगिया थी वो

लेकिन समय को रोका था किसने भला

वो बढ़ता गया वो भी बढ़ती गयी

जो कल तक थी दुनियाँ से बेखबर

आज देखा था मैंने उसे छिपकर रोते हुए

जो रहती थी मां के आंचल से बंधी

आज ढूँढती है पिता को वो कहीं

जाने वो कहां है जो मिलते नही

वो रहते थे दिल में लेकिन उन्हें कभी देखा नही

अभी तो था सीखा था उसने फिर से जीना

उसने माना था मां को ही अपनी दुनियाँ 

पर कैसा सितम ये समय ने किया

उसको क्यूँ दिखा दिया फिर एक सपना

हां सोंचा था उसनें उसे वो मिले

जिसे उसनें चाहा था सबसे ज्यादा

हां मांगी थी दुआ उसने उनके लिए

कहा था खुदा से मिले जन्नत उन्हें

सबको सब मिला जो उसने कहा

बस उसे न मिला वो जो उसने चाहा

जानती थी वो जीवन है दुख से भरा

लेकिन फिर भी जीती थी अपनों के लिए

जानती थी वो तकदीर उसकी नही

लेकिन मां को देखा तो जाना भला

जो तकदीर न होती तो क्या मां होती भला

उसे प्यार मिलता क्या सबसे जुदा

वो मां ही थी उसकी जो दुनिया थी बस 

वो मां ही है जो उसकी दुनिया है अब।


तारीख: 22.09.2017                                    स्तुति पुरवार









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