फूलों की बहार-घनाक्षरी

मंद मंद मकरन्द फूलों की बहार चली,
सांस सांस महकी है खिला रोम रोम है।
भंवरों के गुंजन से जग सारा झूम रहा
पंछियों के कलरव से डोल रहा व्योम है ।
आज  उन्माद मे है, धरा सारी डोल रही
मानो सर्वत्र फैला, हुआ रस सोम है।
प्रेम की विराट लीला, चल रही पग पग
जीवन फूलों का भंवरों के लिये होम है ।


तारीख: 27.02.2024                                    मोहित नेगी मुंतज़िर






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