गुस्से की आग

जब विचारों का विचारों से
द्वंद शुरू हो जाता है
या मन किसी बात पर
बिगड़ जाता है
या फिर खुद पे खुद का
जोर नहीं चल पाता है
तब ये गुस्से का रूप धर
बाहर को आ जाता है
जल जाते इसमें
बहुत से रिश्ते
खत्म हो जाते 
स्नेह के नाते
दूर हो जाता
कितनों का विश्वास
छिन जाता बहुतों का आस
ज्वालामुखी से निकले
लावे की चपेट में
जैसे सब कुछ नष्ट हो जाता है
वैसे ही ये भी
व्यक्ति की शिक्षा, ज्ञान,
विवेक, बुद्धि को लील जाता है
रह जाता जैसे
खाक के बाद राख
वैसे ही बच जाता केवल पश्चाताप।


तारीख: 19.02.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली




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