ना कुछ कहा जाता, ना ही चुप रहा जाता।
ऐसी हैवानियत को देख, अब ना सहा जाता।
कभी निर्भया, तो कभी प्रियंका, तो कभी कोई और,
बेटियों की यूँ निर्मम हत्या, अब और नहीं देखा जाता।
क्या हम महिषासुर मर्दिनी का, फिर से इन्तजार करें?
या राम के वंशज समझ खुदको,इन रावणो का संहार करें?
बहुत जलाया मोम की बाती, अब रावण दहन की बारी है।
समाज के इन कचरो की सफाई,
हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है ।
जिस धरती पर नारी को, माँ दुर्गा,काली सा सम्मान मिले,
ऐसी पवन मिट्टी में क्यों ना,
इन नामर्दों को मौत का फरमान मिले ?
इनके जुल्मों को कुछ ऐसी पहचान मिले,
रब करे, इन्हे ना कब्रिस्तान, ना ही शमशान मिले।
ना जाने भगवान का बनाया हुआ, इन्सान कहाँ मर गया?
इन्सान में बसाया , वो ईमान किस घर गया?
एक वक़्त था जब वीरानों में बेटियां,
किसी राहगीर को देख,डर से चैन पाती थीं ।
गैरों में भी अपने बाप-भाई सी इज्जत भरी नैन पाती थीं ।
बहुत जलाया मोम की बाती, अब रावण दहन की बारी है।
समाज के इन कचरो की सफाई,
हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है ।
हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है ।