हे अखिल विश्व के  कर्णधार ! 

 

हे अखिल विश्व के कर्णधार !
मन की गागर में  प्यार भरो ।
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़-दुलार भरो ।। 


सब दीन-दुखी, सम्पन्न-सुखी
आपस में मिल  समभाव रखें ।
कैसे भी हों दिनमान मगर,
सपनों  में भी न दुराव रखें ।। 
हर  लें सबके मन की पीड़ा, 
शब्दों में वह रसधार भरो ।
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़- दुलार भरो ।।


सबके अस्तित्व अलग हैं, पर
मिलकर न कभी टकरायें हम ।
हम  सभी आपकी  किरणें  हैं, 
मिल ज्योतिपुंज बन जायें हम ।। 
हम सारा  जग जगमग कर दें, 
प्राणों में वह उजियार भरो । 
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़-दुलार भरो ।।


जिसको जब जब आवश्यक हो,
उसको सहयोग करें बढ़कर  ।। 
तज भेद-विभेद खुशी बांटे                     
उद्यम की शत सीढ़ी चढ़कर ।।
श्रम ही जीवन का सारभूत, 
तन मन में  जीवन-सार भरो । 
जन जन से निस्पृह नेह करें, 
कुछ ऐसा लाड़-दुलार भरो ।।


तारीख: 01.08.2025                                    त्रिलोक सिंह ठकुरेला




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