
हे अखिल विश्व के कर्णधार !
मन की गागर में प्यार भरो ।
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़-दुलार भरो ।।
सब दीन-दुखी, सम्पन्न-सुखी
आपस में मिल समभाव रखें ।
कैसे भी हों दिनमान मगर,
सपनों में भी न दुराव रखें ।।
हर लें सबके मन की पीड़ा,
शब्दों में वह रसधार भरो ।
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़- दुलार भरो ।।
सबके अस्तित्व अलग हैं, पर
मिलकर न कभी टकरायें हम ।
हम सभी आपकी किरणें हैं,
मिल ज्योतिपुंज बन जायें हम ।।
हम सारा जग जगमग कर दें,
प्राणों में वह उजियार भरो ।
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़-दुलार भरो ।।
जिसको जब जब आवश्यक हो,
उसको सहयोग करें बढ़कर ।।
तज भेद-विभेद खुशी बांटे
उद्यम की शत सीढ़ी चढ़कर ।।
श्रम ही जीवन का सारभूत,
तन मन में जीवन-सार भरो ।
जन जन से निस्पृह नेह करें,
कुछ ऐसा लाड़-दुलार भरो ।।