अब हमको स्वीकार नहीं है

सरकार से---

जल रहा देश तो जले हमारा, तुम्हे तो कुर्सी प्यारी है
हर चोट करते चुप चाप सहन तुम यह कैसी लाचारी है
छोडो झूठे आश्वासन, कहती जनता है यही सुनो
रक्षा का सामर्थ्य जिसे, वे ही सत्ता अधिकारी है
मोल लगते दिख जाते हो हर वस्तु का तुम किन्तु
जीवन का ही सौदा कर लो यह तो तय व्यापार नहीं है
जीवन भर डर डर कर जीना अब हमको स्वीकार नहीं है

आतंकियों से---

चेहरे पर मल कर आग हमारे, बोलो तुमने अपने कितने दीप जलाये
नष्ट कर प्रेम के  उपवन को हमारे , बोलो तुमने कैसे विष वृक्ष उगायें
"किसी के हितो के लिए लड़ रहे हम " कहते रहे तुम ये सदा
पर बोलो अश्रु सरिता को बहा , तुमने हैं कितने लोगों के प्यास बुझाये
एक ईश्वर है यहाँ  जो  जीवन ले  तो जीवन भी दे
जो सृजन न है तुम्हारा उसको मिटने का तुझे अधिकार नहीं है 
जीवन भर डर डर कर जीना अब हमको स्वीकार नहीं है

 
जनता से---

जीवन के तट पर  एक दिन आयी एक भीषण लहर
क्षण भर में सपनो की दुनिया जैसे थी बिलकुल गयी उजड़
हो खड़े कोसते रहे एक पल हम निष्ठुर उस भगवन को
फिर जुटा कर कंकरों को हमने बनाये अपने महल - घर
हार कर बस अश्रु बहाना यह तो  सरल उपाय है
किन्तु थक कर बैठ जाना यह मानव व्यवहार नहीं है
जीवन भर डर डर कर जीना अब हमको स्वीकार नहीं है


तारीख: 18.06.2017                                    कुणाल




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