जो कल हमने भी देखा था

इस दुर्गम सी महफ़िल में,
जहाँ जीने का कोई नाम नही
लोगों से लोग ही उखड रहे,
बातों में बातें बिगड़ रहे
जहाँ शान्ति के लिए रोज़ाना 
सदजनो में कीच-कीच होता है
याद आता है वो कल हमें
जो कल हमने भी देखा था

वो जहाँ भी हमने सोचा था
जिस जहाँ में हम तुम साथ रहे
मतलब का ना हो दरकार जहा
हम तुम का न हो सरोकार जहा
एक दूजे के लिए जिए 
और एक दूजे के लिए मरे
याद आता है वो कल हमे 
जो कल हमने भी देखा था

क्या इसी लिए दी बलिदानी
एक दूजे से तुम लड़ो भिड़ो
क्या सोचा था ? ये क्या हुआ
क्या इसीलिए की क़ुरबानी
सोचा था कैसा ये जहाँ होगा
जन्नत भी जहा आइना होगा
याद आता है वो कल हमे
जो कल हमने भी देखा था

सींचा था अपने रक्तों से
इस जहाँ की मिट्टी निराली
क्या इतना भी कुछ कम ही था?
जो एक दूजे का खून बहा रहे
जो सोचा था वो ही ना हुआ
किस बात का फक्र अब हो हमें
याद आता है वो कल हमें
जो कल हमने भी देखा था


तारीख: 01.07.2017                                    प्रतीक यादव









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