कलम आज उनको कुछ बोल
चुनाव पूर्व जो छत्तीस होते, चुनाव बाद तीरसठ वो होते
इस छत्तीस तीरसठ के गणित मे
तू दे अपना राय अनमोल.
प्रजातंत्र की गजब कहानी, छोटे दल की हो गयी मनमानी
मैंनडेट का शल्य क्रिया कर
सत्ता पर काबिज हो जाते और बजाते ढोल.
जनता भोली- भाली होती ,छल- छद्म की समझ न होती
देकर मत वर्ष पांच है रोती
लोकतंत्र के महापर्व के इस राज को खोल.
मिडिया भी हो गया अजीब है, रहा नहीं किसी का अजीज है
जनता जाये तो जाये कहाँ?
जब मिडिया बोले सियासी बोल.
नेता जी शातिर हैं ऐसे, नहीं डकारते खा सरकारी पैसे,
डुबे रहते दुराचार मे,कुविचार मे
फिरभी बोलते सदा सदाचार की बोल
खादी-खाकी मे अजब है नाता, खा उपसर्ग दोनो मे भाता
‘खा’ अक्षर का इज्जत रखते
करते सारे विधि-विधान भंडोल
सन सैतालीस से 2024 तक, नेहरु जी से अब तक
लोक लुभावन नारा देकर
मतदाता से बटोरते रहे वोट अनमोल
वही गांव, वही पगडंडी, वही गरीबी, वही मंडी
दिखा जनता को सुनहला सपना
नेता पीते रहे दूध मे केसर पिस्ता घोल