करार

बिखर रहा है कोई तो देख लो ठीक से ,
यही तो वक़्त चोट दो औजार के साथ। 
वक्त का क्या मौका ये  आए न आए,
कि ढह चला है किला दरार के साथ।

छोटी सी है बारीकियां जो सीख लो ठीक ,
झूठ हीं फैलाना सत्याचार  के साथ । 
औकात पे नजर हो जज्बात बेअसर हो ,
शतरंजी चाल बाजियाँ करार के साथ।

दास्ताने क़ुसूर भी बता के क्या मिलेगा,
गुनाह छिप हैं जातें अखबार के साथ।
नसीहत-ए-बाजार में आँसू बेजार हैं ,
दाम हर दुआ की बीमार के साथ।

चुप सी हीं हैं होती ये चीखती खामोशियाँ,
यही शोर का सलीका कारोबार के साथ।
ईमान के भी मशवरें हैं लेते हज्जाल से, 
मजबूरियाँ  भी  कैसी लाचार के साथ।

दाग जो हैं पैसे से होते बेदाग आज ,
बिक रही है आबरू चीत्कार के साथ।
सच्ची जुबाँ की भी बोल क्या मोल क्या?
गिरवी न चाहे क्या क्या उधार के साथ।

आन में भी क्या है कि शान में भी क्या है,
ना जीत से है मतलब ना हार के साथ।
फायदा नुकसान की हीं बात जानता है,
यही कायदा कानून है करार के साथ।

सीख लो बारीकियाँ ,ये कायदा, ये फायदा,
हँसकर भी क्या मिलेगा व्यापार के साथ।
बाज़ार में खड़े हो जमीर रख के आना,
खोटे है सिक्के सारे  बाजार के साथ।

नफे की खुमारी में जो तुम मदहोश हो ,
कि छू रहो हो आसमां व्यापार के साथ ।
काजल की कोठरी में सफेदी चाहते हो,
सोचो न क्या मिलेगा खरीद दार के साथ।

काटते तो इससे कट जाओगे भी एक दिन,
कि धार बड़ी तेज इस हथियार से साथ।
मक्कार ये बाजार ये ना माँ का ना बाप का ,
डूबोगे तब हंसेगा  धिक्कार के साथ ।


तारीख: 12.02.2024                                    अजय अमिताभ सुमन









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