उम्र भर हम दूसरो को कटघरे मे खड़ा कर बेधड़क फैसला सुनाते गए,
जब बात हमारी आई तो सोचा हमसे अच्छा कौन है ?
हमसे अच्छा कौन है ? कि अपने हर ऐब की सफाई तैयार रख दूसरो से समझदारी की उम्मीद लगा बैठे,
उम्मीद..की लोग हमारे इरादो को पढ़ लेंगे,की हमारे हर फैसले की गहराई को समझेंगे।
उम्मीद टूटी तो मन को समझाया की ये सारी दुनिया नासमझ है, ये हमारी नेकी के लायक नहीं ,
इस कश्मकश् मे रिश्ते पिछे छूटते गए और हम तनहा आगे बढ़ते गए।