यूँ न जाऊंगा मैं जग से गुमनाम

यूँ न जाऊंगा मैं जग से गुमनाम
एक दिन दुनिया ढूंढेगी मेरे निशान 
अश्क न व्यर्थ जायेंगे, गूंजेगी आहें मेरी 
आवाज़ मेरी रंग लाएगी|

ना सिर्फ एक रंज है आशिकी का 
हर तरफ बस शोक है ख़ुशी का 
दर्द बना है विष का प्याला 
और कितना समेटूं इसे|

अब ख़ामोश कब तक रहूँ  
तनहाइयों को कब तक सहूँ 
लो आज मैं अनकहे राज़ खोलता हूँ  
दर्द, आँसू और ख़ुशी के बोल बोलता हूँ|

सदा ही ना वीरान था मेरा गुलशन 
बहार भी आई थी पुलकित था तन मन
उमंग में डूबकर मैं ख़ुशी से झूमता था 
प्रेमगीत सुरों में सजा कर चूमता था|

सपनों सी सुन्दर थी ये दुनिया
हर दिन सुहाना था 
राते थी सितारों से जड़ी 
दिल में उमंगो का खजाना था 
भूल जाऊं किस तरह से 
तेरे खामोश निगाहों की दास्तान
याद आती है मुझे तेरी हंसी 
तेरा शरमाना |

कह न सकी तुम ना मैं बोल पाया
अनकही ये दास्ताँ दिलों की बह रही 
है आज आँसू बन के आँखों से|


तारीख: 22.06.2017                                                        सत्येन्द्र प्रताप सिंह‬






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