खुद को तू खुदगर्ज होने से बचा

खुद को तू खुदगर्ज होने से बचा
बहती गंगा में हाथ धोने से बचा।
भले लोग समझे पत्थर दिल तुझे
मगर घड़ियाली रोना रोने से बचा।
देख खूबसूरती होती है इक बला
अपनी  आँखों को  खोने से बचा ।
सादगी भी सितम  ढाती है कभी
खुद को ही शिकार, होने से बचा ।
दिलो-दिमाग के झगड़े में  अजय
अपनी लुटिया को डुबोने से बचा।
 


तारीख: 19.03.2024                                    अजय प्रसाद









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