दादी

वो आती है याद मुझे,
कभी तपते हुए गांव में
दोपहर की छाओं में।

वो आती है याद मुझे,
कभी लाड़ लगाते,
कभी प्यार बरसाते,
कभी गीत सुनते,
कभी गर्मी की रातों में,
छत पर मुझे कहानियाँ सुनाते।

वो होती है महसूस मुझे,
कभी किसी की चमकती आँखों में,
कभी किसी की दमकती हंसी में,
कभी उस कोने वाले कमरे में,
कभी हमारे आँगन में।

वो आती है याद मुझे,
कभी लाठी की टेक पर,
कभी उपलों को देख कर।
अब बस याद ही है करना,
क्यूंकि देखना उन्हें होगा अब,
इक मीठा सा सपना।


तारीख: 21.06.2017                                    निधि




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है