खुशी से नौका बना रहे

 

सूखे से मन है विचलित

नीर जुबां पर, गला है कुंठित

कारे बदरा क्यों गरज़ रहा?

बारिश को मन तरस रहा

 

हूँ दीन-हीन, हे मेरे दाता!

अज्ञानी हूँ,सभी के ज्ञाता

लावारिश हूँ वारिश मेरा

कृषक हूँ तू बारिश मेरा

 

हवन,यज्ञ,पूजा,नमाज

बारिश हो सबका फ़रियाद

अलग रास्ते ख़्वाहिश एक

सर्वधर्म सिद्धांत है एक।।

 

ईश्वर तू है पालनहार

शायद सुना चीख-पुकार

बारिश शुरू,शुरू जयकारा

घर-घर गूंजे नाम तुम्हारा

 

खुशी के आँसू टपक रहे हैं

मानो वसुधा से लिपट रहे हैं

जलमग्न हुए नदी-नाले

मगन हुए प्यारे रखवाले।।

 

खुशी से नौका बना रहे

घर,आँगन में चला रहे

नौका से ही कलाम बना

भारत के महान बना।।

 

टर्र-टर्र करतल ध्वनि अर्पण

बरसाती मेंढक के दर्शन

खेत में गायब धान है

मानो अदृश्य प्रधान है ।।

 

जगह-जगह है जल भराव

बच्चों में स्विमिंग पूल का भाव

कीचड़,मिट्टी से स्नान

पंचतत्व का वास्तविक ज्ञान।।


तारीख: 07.07.2019                                    ज़हीर अली सिद्दिक़ी









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