कुछ हथिया रहा हूँ

अपनी गज़लें ही तो मैं सुना रहा हूँ
कहाँ किसी का कुछ हथिया रहा हूँ ।
आप कहतें हैं कि कायदे से कहो
कहाँ कुछ भी इससे कमा रहा हूँ ।
रोजी-रोटी के लिए तो नौकरी ही है
मैं क्या शाईरी के घर चला रहा हूँ ।
मुबारक हो महफिल आपकी मियाँ
मैं तो बस फेसबुक पर ही आ रहा हूँ ।
मेरी गज़लों को बकवास कहनेवालों
तुम पर भी मैं फूल ही वर्षा रहा हूँ ।
याद रखना होगा कामयाब अजय भी
अभी तो बस वक्त को आजमा रहा हूँ ।


तारीख: 27.02.2024                                    अजय प्रसाद









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