माँ

पहली बार जब हमने इस धरती को अपनाया,

माँ जैसा अनमोल रतन हम सबने पाया।

माँ ने हमको पाला पोशा, हर दुःख गले लगाया,

दूर देश से आया बेटा हमको यही बताया।।

 

जब-जब बीते दिन सुहाने, निशा सुहानि आयी।

माँ ने हमको हर करवट पर नयी कहानी सुनायी।

हर अभिलाषा पूरी की है चंदा मामा लाई।

मन हर्षित हो खिल जाता है माँ की देख परछाई।।

 

बेटे की सुनकर कराह तू रातों में ना सोयी,

माता से पवित्र नाम संसार में दुजा ना कोई।

माता की आँचल की ओट में पलता  है ये तन-मन,

तू ना होती तो ना होता ये सृष्टि ये जीवन।

माता तू इतनी सुन्दर है, तुझसा कोई ना दुजा।

शाम-सबेरे दिल में मेरे होती तेरी पूजा।। 

 

तू बाती मेरे दीपक की, निज जल उजियारा करती है। 

जब-जब पग मेरे डगमग हो, तू दौड़ सहारा बनती है।।

 

तुझ बिन जीवन क्यों अँधियारा,

तुझ बिन मन से मन क्यों हारा।

तू मनोहारी इक छाया है, तुझमें संसार समाया है। 

है स्वर्ग बसा तेरे पग में, तू कोई अद्भुत माया है।।

 

लेकिन माँ मैं आज दुःखी हूँ , इतना दुःख क्यों सहती है।

इतने तकलीफ़ों में भी तु, गंगा जैसी बहती है।

तूने तो वरदान समझ के जिन बच्चों को पाला है।

आज उन्ही बच्चों ने तुझको तेरे घर से निकाला है।

फिर क्यों संजीवन बनके तू अपने बच्चों पे छाई।

माता इतना प्यार ये तेरा, तु है कहाँ से आई।।

 

तू जलपरी है या कोई देवी बस मैं इतना जानूँ।

माता को धरती-आकाश में सबसे ऊँचा मानूँ।

जब-जब मैं धरती पर आऊँ प्यार मैं तेरा पाऊँ।

बेटा तु मुझको कह दे , मैं माता कहके बुलाऊँ।।
 


तारीख: 04.03.2024                                    अजीत कुमार सिंह









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