एक ही शब्द काफी है परिभाषित करने के लिए,
पुत्र का प्यार ही है उसे सुशोभित करने के लिए ।
बिन कहे ही समझ जाती वो दिल की हर बात,
अपने आँचल मे वो कर लेती सबको आत्मसात ।
जिसकी वंदना करे सृष्टि के ब्रम्हा विष्णु महेश,
वो कैसे कर सकती है घर मे कोई क्लेश ।
उसके बिना लगे घर आँगन हमेशा सूना,
उसके होने से ही खुशियाँ हो जाती दूना ।
हमेशा रक्षा करती उसकी दुआएँ बन मजबूत ढाल,
जब भी कोई बलाएँ हो पड़ती आन ।
हर मुश्किल का हँस कर लेती सामना,
ना कभी रखे वो मन मे कोई दुर्भावना ।
जिसका संबल ही हो पुत्र का आधार,
जिसके संस्कार, चरित्र और हो उच्च विचार ।
उस देवी को करता हूँ नमन बारंबार,
उसके चरणों मे अर्पित धवल पुष्पहार ।