मदारी

गांवों में मदारी आता था ,
       अपने शागिर्द भी लाता था
गुड़ी चौक में खड़ा होकर,
       हाथ लहरा चिल्लाता था
है कोई ऐसा यहां जो,
        मेरा खेला रोक सके
खींच रहा हूं जो रेखा,
         आकर कोई टोक सके
फिर मदारी अपने थैले से,
          निकालता था डमरु
और डम डम डम डम बजा,
           पुकारता था जमूरे कमरु
लोगों को खेल दिखायेगा,
            मुरझाए चेहरे में चमक लायेगा
गांव में बहुत सांप बिच्छू है, 
            गांव वालों को बचायेगा
हां उस्ताद बचायेगा, 
            ऐसा ऐसा खेला दिखायेंगा
हमसे पहले आज तक , 
            कोई नहीं दिखा पाया 
आगे भी ऐसा खेला ,
            कोई ना दिखा पायेगा
ये सब बातें सुन हम नासमझ, 
            तमाशबीन बन जाते 
मदारी की हर हरकत पर , 
            ताली बजाकर चिल्लाते 
मदारी तरह तरह-तरह के, 
            खेल दिखाता था
कभी जमूरे को गायब , 
            तो कभी वापस लाता था
मदारी अपने टोकरे को, 
            सबके सामने रखता 
टोकरे में पेपर के टुकड़े डाल,
           अपने चादर से ढकता 
न जाने मदारी भीतर भीतर ,
           क्या कुछ करता 
एक छड़ी को टोकरे के उपर,
           गोल गोल घुमाता 
कुछ ही देर में कागज , 
           सांप बना जाता था
अचानक ही सांप फन उठा, 
           जमूरे को डसता
और जमूरे कुछ ही देर में, 
          मरने का स्वांग रचता 
मदारी चिल्लाता साहबानो, 
           कदरदानो मेहरबानो माई बाप
मेरा जमुरा मर गया,
           अभी ये देख लो आप
फिर मदारी झोले से अपना, 
           कुछ जड़ी बूटी निकालता
पानी में डुबाकर हिलाता, 
           जमूरे को वही पानी पिलाता
पानी पीते ही जमुरा,
            उठकर बैठ जाता
दोनों हाथ जोड़कर, 
             सबका अभिवादन करता
फिर मदारी झोले से, 
              एक ताबीज निकालता
ताबीज को मुठ्ठी में, 
              कसकर पकड़ता
मुठ्ठी को सांप के आगे
               दाऐ बाऐ लहराता
लेकिन सांप डसता नहीं, 
               सिर्फ फुंफकारता
फिर मदारी ताबीज बेचने लगता
साहबान कद्रदान मेहरबान ,
               ले लो ले लो
एक का तीन एक का तीन,
               पांच रुपए में दो लो
जो करता अपनों से प्यार,
               खरीदेगा ताबीज चार
आओ आओ सोचो मत,
               मौका ना मिलेगा फिर यार
मदारी कई तरह के जुमले गढ़ता,
               ताबीज बेच आगे बढ़ता
मदारी डर का माहौल बना, 
               मायाजाल फैलाता था
तमाशबीनों को ठगता, 
              और अपना काम चलाता था
मदारी का काम धंधा,
               अब बढ़ गया है
मदारी अब सेल्फ मेड, 
               नेता बन गया है
हर कस्बा और नगरों में, 
              आफिस खोल दिया है
हर जगह जमुरो की, 
              फौज खड़ा कर लिया है
कुछ जमूरे आई टी सेल चलाते हैं
               बाकी नेता के हां में हां मिलाते हैं
मीडिया भी अब अपने सारे तंत्र
               मदारी के चरणों में धर दिया है
पैसों के लिए गठबंधन कर लिया है 
               मीडिया डिबेट आयोजित करता है
जो मदारी द्वारा प्रायोजित रहता है
               कार्यक्रमो का नाम भी ऐसा ऐसा
कि आप सुनकर दंग रह जाए 
               एक का नाम "पुछता है भारत"
तो दूसरे का नाम "हल्ला बोल"
               तीसरा तलवार लिए "आर पार"
चौथे ने नाम रखा है "दंगल"
               ये मीडिया है कि नफरत का जंगल
मदारी भ्रम का मायाजाल दिखा रहा है
               हमें तरह-तरह से नफ़रत सिखा रहा है
पुराने मदारियों का काम अभी मंदा है
               धर्म और राष्ट्रवाद का नया धंधा है
मदारी जानता है कि,
               भीड़ में दिमाग नहीं होता है
हांक दो जिस ओर, 
                उस ओर चल देता है
क्या आप खुद को ऐसे ही गढोगो ?
               इंसानियत को रौंदते आगे बढ़ोगे ?
भ्रम का मायाजाल ,
             आज नहीं तो कल टूटेगा
तब सारा दोष तमाशबीनों पर ही फूटेगा


तारीख: 24.02.2024                                    ईश्वरी प्रसाद परगनिहा









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