मैं आईना हूं

मैं, आईना हूं

जानता हुं तुम्हें उतना

कोई नहीं जानता जितना

कहता हूं बहुत कुछ पर, सुनता नहीं कोई

 

छोटी सी थी तुम जब पहली बार मुझसे मिली

अपनी परछाई मुझमे देख कर आश्चर्य से भरी

आगे पीछे घुटनों से चल कर देखती रही

ये कौन है? क्या कोई मेरे जैसी है खड़ी

 

नन्ही परी को देख कर मेरा मन लाड करने को हुआ

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

स्कूल जाने के लिए जब मम्मी तुम्हारी चोटी बनाती

रूठा हुआ चेहरा देख कर मेरी हसीं निकल जाती

इतनी सुबह क्यों जाना होता है स्कूल ये बात तुम्हें सताती

बस दो दिन और फिर संडे कह कर मम्मी तुम्हे मनाती

 

मेरी गुड़िया अब स्कूल जा रही है देख कर मेरा मन भर आया

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

मम्मी की साडी पहन, बिंदी लगा टीचर बन जाती

स्टूडेंट बना मुझे अच्छे से पढ़ाती

कभी पापा सा दुलार  कर इठलाती

कभी  मम्मी बन मुझे खूब डांट लगाती

 

खेलना चाहता था तुम्हारे साथ मैं भी बच्चा बन कर

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

पहला पिम्पल देख कर जोर से चिल्लाती

न जाने कितने क्रीम, फेसवाश बाज़ार से ले आती

मैं अच्छी नहीं दिखती सोच कर उदास बैठ जाती

पिम्पल क्यों नहीं जा रहे सोच घबराती

 

बताना चाहता था तुम्हे कुछ नहीं होता बाहरी रंग रूप

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

हाथ में घड़ी और बैग टांग जब तुम ऑफिस के लिए जाती

नए उत्साह और उमंग से भर जाती

अपने सपने पूरे करने आत्मविश्वास से आगे आती

मम्मी पापा को गर्व करना है खुद पर एहसास से काम पर निकल जाती

 

अभिमान से भर गया था मैं तुम्हे देख कर, कहना चाहता था बेटियां किसी से कम नहीं होती

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

लड़की देखने आने वाले हैं सुन कर सहम जाती

अभी नहीं करनी शादी कह आंखें भर लाती

रंग रूप, दहेज से जितने रिश्ते ना होते उतनी बार तुम टूट जाती

मम्मी पापा से छुप रो रो कर मेरे सामने बैठ जाती

 

कहना चाहता था तुम्हे हीरा हो तुम, इन लोगों को कद्र नहीं तुम्हारी

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

दुल्हन बन तुम मेरे आगे बैठ शर्माती

नए जीवन के सपने आंखों में भर लाती

मम्मी पापा तुम्हे देख ख़ुशी से भर जाते

आंसुओं को रोक कर विदाई का गम छुपाते

 

तुम्हे देख आज बस इतना कहना चाहता था, ये बेटियां कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं

कहता हूँ बहुत कुछ पर सुनता नहीं कोई

 

सूजा हुआ चेहरा, आंखों पे काले घेरे लिए तुम आज मेरे सामने बैठी हो

टूटे हुए सपने, बिखरा हुआ संसार बस यही ससुराल से लायी हो

मेरे आगे बैठ कर चेहरे, हाथों के जख्म निहार रही हो

खामोश बैठ बस आँखों से पानी सी धार बहा रही हो

 

टूट गया मैं उतने टुकड़ो में जितने गिरे तुम्हारे आसूं, आज कुछ नहीं कहना चाहता बस  बिखर जाना चाहता हूँ सदा के लिए


तारीख: 05.02.2024                                    शिल्पा बेहार









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