लक्ष्य

लक्ष्य सुनहरा कठिन डगर है
कंटक से परिपूर्ण सफर है
कष्ट तुझे जो काट रहे हैं
वो साँचे में ढाल रहे हैं।

आज चमक है आंखों में जो
नहीं सफर में खो जाए वो
उठकर गिरना गिरकर उठना
पीछे मगर कभी न हटना।
सखा शुरू में लक्ष्य के सपने
सबके आंखों में होते हैं
किंतु लक्ष्य का बीज धरा पर
सच में कुछ कुछ ही बोते हैं।
दूर फेंक दे एक पल में तू
तेरी आँखों में जो डर है
लक्ष्य सुनहरा कठिन डगर है
कंटक से परिपूर्ण सफर है

तुझे निराशा भी घेरेगी।
संयम अपना मुह फिरेगी।
मगर नही तू एक पल रोना
तपकर निखरा करता सोना।
क्रोध के भावावेश में बहकर
तुझे पड़ेगा खूब चुकाना।
 धीरजता का अस्त्र बनाकर
तुझको तो है रण में जाना।
एकाग्रचित्त और कठिन परिश्रम
को ही बनाना  सचे साथी
होकर निडर लक्ष्य को बढना
करके निर्भय चौड़ी छाती।
रुकना नही राह में तुझको
अब तो लक्ष्य ही तेरा घर है।
लक्ष्य सुनहरा कठिन डगर है
कंटक से परिपूर्ण सफर है।
 


तारीख: 26.02.2024                                    मोहित नेगी मुंतज़िर









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है