मन की आवाज़

मुद्दतों बाद
मन बतियाया हमसे,
कभी तो सुन लो मेरी
पूरी कर दो साध मेरी,
मैं भी तुम्हारा हिस्सा हूं
बस पिसता ही रहता हूं,
मुझे हंसी आई 
उसकी​ दिलजोई पर ,

बोलो मेरे हिस्से
अब तुमको क्या शिकायत है मुझसे,
उसने दनदनाते हुए कहा
कभी बैठ जाया करो 
छत की मुंडेरी पर,
भोर से मिल आया करो
सूरज की लाली को अपने
रुखसारों पर सजाया करो,
उलझी लटों को हवा से बतियाने छोड़ दिया करो
उड़ते परिंदों संग परेशानियों को भी उड़ जाने दिया करो,
ओस की बूंदों को अपने कदमों के नीचे दबा कर 
फूलों से कभी माथे को सजाया करो,

मैंने​ कहा
भरमा रहे हो मुझे
रास्ते से भटका रहे हो मुझे,
अभी तो बाकी है बहुत सी मंजिलें
जिन्हें अपनी ओर करना है 
अभी वक्त कहां है,
अभी तो जीवन संग्राम से जूझना है
अभी तो खड़े रहने को जमीं मिली है
सारा आकाश अभी बांहों में भरना है,

बोला सब कुछ पाकर भी
खाली खाली लगेगा जब
तब पूछूंगा आकर के 
क्या विचार है आगे अब, 
शब्दों को तोला जब उसके​
मैंने हंसकर बोला उससे
तुम जीते मैं हारी तुमसे,
सच कहते हो तुम एकदम
आत्म संतुष्टि नहीं अगर तो
व्यर्थ रहा सब धन अर्जन।।


तारीख: 05.02.2024                                    अंजू









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