चुम्बक सी स्मृति तुम्हारी
याद करू तो खो जाता हूँ
तुम संग ऐसी लगन लगी थी
मन भावुक मैं रो जाता हूँ
खुली आंख ओझल ओझल
मैं स्वपन तेरे सजाता हूँ
होठ विषाद तन में ख़ुमारी
भीतर ही भीतर सह जाता हूँ
किसे बताऊ वेदना अपनी
मैं शब्द सियें रह जाता हूँ
राग अनुराग बोझिल बोझिल
राहें तकतक थक जाता हूँ
भान मुझे तुम न आओगे
मिथ्या से मन को समझता हूँ
चाँद दिखा माँ बहलाती थी
वैसे ही मन को बहलाता हूँ
आना न आना तुम पर निर्भर
मैं तो गीत मिलन के गाता हूँ
चुम्बक सी स्मृति तुम्हारी
याद करू तो खो जाता हूँ