मेरे शहर

मेरे शहर जा रहे हो तो ये ख़त ले जाओ 
आजकल डाकिया आता नहीं इस शहर में 

ले जा कर पुराने शहर में डेवढी पर उसकी 
बस खिसका देना दरवाजे के नीचे से अंदर 

बुलाना मत नाम ले कर नौशा-नौशा बाहर 
बहुत तकलीफ होती है पत्थरों को चलनें में 

हालाँकि एक दफ़ा उसने लिखा था ख़त में
अक्सर घूमा करता है वो रात-भर शहर में 

खैर नौशा का दौर और था हालात और थे  
अब तो पुलिस या चोर धर लेते हैं शहर में


तारीख: 28.06.2017                                    मनीष दुबे (ख़याली)




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है