मुसीबतों का पहाड़

काटते हैं  मुसीबतों का पहाड़ 'मांझी' जैसे
मसअले उजाड़ जातें हैं हौसले,आंधी जैसे ।
जालिमों कर  लो ईज़ाद नए ज़ुल्मो सितम
ऊब गये  हम लड़ते-लड़ते अब 'गांधी'जैसे ।
खुदा भी मेहरबाँ है बिलकुल  उसी तरह से
होतें हैं महलों में बसे शहंशाहों के बांदी जैसे ।
गमों के गिर गए हैं दाम गरीबी देख कर यारों
खुशियाँ हो गई  महंगी सोने और चांदी जैसे।
अफ़सोस अजय तेरा ज़ेहनो ज़मीर ज़िंदा है
काश! जी लेता तू भी आधी  आबादी जैसे


तारीख: 06.02.2024                                    अजय प्रसाद









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