नारी तुम श्रद्धेय हो।


उठो!,
अपने दूध से सींचकर,
अपने लाल को इंसान बना दो।
थक तुम सकती नहीं,
रूक तुम सकती नहीं,
हार  सकती नहीं तुम,
अपने तेज से अपने लाल को,
ओजस्वी बना दो।
नहीं कुछ भी असम्भव तुम्हारे लिए,
कर गुजरने की चाह में,
कुछ नहीं नामुमकिन तेरे लिए,
अपने कर्मों से ,
अपने लाल को अजेय बना दो।
इतिहास गवाह है,
जब जब आन पड़ी,
तुम पर विपदा भारी,
तुमने मिटाने में उसके,
लगा दी शक्त  सारी,
अपने विश्वास से,
अपने लाल को,जीना सीखा दो।
नारी तुम श्रद्धेय हो।
अपनी श्रद्धा से ,
अपने युग को अमर बना दो।


तारीख: 05.03.2024                                    रेखा पारंगी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है