निर्दोष पशुओं की बलि

धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं की बलि
रज़ा हो नहीं सकती ये तेरी अली। 

उस निरीह की आँखों मे देखो
जीने का ख़्वाब वहाँ भी पलता है 
उस बेबस के दिल मे झाँको
तुम्हारा खुदा वहाँ भी बसता है। 

दिल के एक कोने में मेरे
टीस सी ये उठ चली
धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं की बलि
रज़ा हो नहीं सकती ये तेरी अली। 

ये ज़मीं उसकी भी है
आसमाँ उसका भी है
चाँद, सूरज और हवा
सब पे हक़ उसका भी है। 

बन के उसके मन की आवाज़
कलम ये मेरी चली
धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं की बलि
रज़ा हो नहीं सकती ये तेरी अली। 

काट जो देते हो धड़
काँपते नहीं क्या कर
चीख सुनकर उस निरीह की
क्या कुछ भी ना होता असर?

जान लेने की रीत ये कैसी चली
धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं की बलि
रज़ा हो नहीं सकती ये तेरी अली। 


तारीख: 12.04.2024                                    सौम्या तिवारी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है