न जाने क्यों लोग
अपनी खुशी के लिए
फूलो से मुस्कान छीन लेते हैं ।
ये कैसी विडंबना है
कैसी मानसिकता है
दरवाजा बंद कर अपनी दहलीज का
ओरों की दहलीज के फूल बीन लेते हैं ।
अपने घर की आबरू
सभी को प्यारी लागे है
कड़वी है परंतु सच्चाई है
कलाई पर राखी बंधवाने वाले
ओरों की कलाई से राखी मिठास क्यों छीन लेते है ।
बहू चाहिए सभी को
बेटी क्यों नहीं चाहिए
जिस कोख से जन्म मिला
उसी कोख में कुछ बेशर्मी लोग
भविष्य की कोमल सांसे क्यों छीन लेते हैं ।
काश ऐसा होता
ये सुदंर मुखड़ा मेरा होता
सभी की सोच में घुला मिला
सच्चाई का दीपक लेकर
दर बदर ढूंढने निकले जब
प्रत्येक दीपक स्त्री सम्मान में बुझा मिला
कुछ जल जाती हैं
कुछ बिक जाती हैं
कुछ ऐसी भी हैं
जो बहक जाती हैं
दोष नज़र का नहीं
नजरिये का होता है
न जाने क्यों लोग
नजरिये से स्त्री का सम्मान छीन लेते हैं ।
मैंने तो
अपनी बहन को जब से
नजर में उतार लिया
देखकर फूलों सी सभी लड़कीयो का
अपनी बहन के जैसा ही सत्कार किया
फिर भी न जाने क्यों लोग अपनी दूषित सोच से
मेरी बहनो की होंठो की मुस्कान छीन लेते हैं ।