पतंग हु या पक्षी हु मैं

पतंग नही पक्षी हो तुम ,
ये कहा था उसने मुझे ।
और मैं प्यार में इतनी अंधी ,
के उड़ान के सपने देखने लगी।
देखा ही नही के एक पतली सी डोर
अब भी उसके हाँथो में है,
और मैं जमीन से थोड़ा उठकर आसमान के सपने देखने लगी।।

वो कहता रहा कि दिल की सुनो,
वो कहता रहा कि मन की करो,
पहले मैं थोड़ा झिझकी
फिर पलट कर अपनी खाली ज़िंदगी को देखा,
और सच्ची मुस्कान के सपने देखने लगी।

मैं कहने लगी वो सुनने लगा,
मैं समझाने लगी वो समझने लगा,
मुझे थोड़ा तो गुरूर हुआ था उस दिन अपनी किस्मत पर,
के धीरे धीरे ही सही
पर अब वो शायद मुझे समझने लगा।।

फिर एक दिन थोड़ी हिम्मत करके
मैंने कलम उठा ली थी,
उस हर किस्से के ज़िक्र किया
जिसने मेरे दिल में जगह ली थी।
उस दिन पैरों में एक छोटी सी सिहरन महसूस हुई,
पलट कर देखा तो वो धागा अब भी
उसकी उंगलियों से जुड़ा सा था।।

तब एहसास हुआ के ये सब कहने सुनने की बातें हैं,
कि पतंग नही पक्षी हु मैं,
मैं आज भी पतंग हु,
बस कभी कभी उड़ने की थोड़ी आज़ादी मिलने लगी है।
और उस कभी कभी की आज़ादी में,
एक नए मक़ाम के सपने देखने लगी।


तारीख: 07.03.2024                                    शिवानी सिंह









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