प्रभात बेला

सूरज की लालीमा से आकाश हुआ लाल है,
शीतल समीर का अहसास बेमिसाल है ।

चहचहा रही चिड़ियाँ कह रही है सुप्रभात,
होनेवाली है सुबह विदा ले रही है रात ।

बिखरे पड़े हैं मोती हरी-हरी घास पर,
गूँज रहा मंदिरों में घंटी का मधुर स्वर ।

प्रकृति की छवि का अद्भुत नजारा है,
खिल गई है कलियाँ उपवन कितना प्यारा है।

'अमृत-बेला' में जो जाग जाता है,
विद्या,बुद्धि व स्मरण शक्ति पाता है।

प्रातःकाल उठता करता है योग,
उसका शरीर सदा रहता निरोग ।

नव-प्रभात जीवन में नव-ऊर्जा भरता है,
बिना कठिन श्रम के जीवन कहाँ संवरता है।

जागो 'प्रभात बेला' में तोड़ो आलस्य के घेरे,
हरि-स्मरण करो उठकर सुबह-सबेरे ।


तारीख: 24.02.2024                                    राजीव रंजन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है