प्रकृति ने भी प्रेम किया

मौसम आज कुछ बदला नजर आया
शायद सावनी ऋतु ने अंगड़ाई ले उसे बुलाया
मेघ घनघोर गगन में छाने लगे
बिजलियों की गूंज कानों को डराने लगे
पवन  लापरवाह हो बहने लगा
नभ भी अपना रंग अब बदलने लगा
मानो धरा पर उसने अपना प्रेम लुटाया
बादल भी कुछ इस कदर  मुस्कुराया
धरा के हृदय को भिगोने लगा
झमाझम वह बरसने लगा
कोपलें नई प्रेम की फूटने लगी
हरियाली चुन्नी तन को ढकने लगी
बरखा नृत्य दिखाने लगी
मेघ संग गीत कोई गुनगुनाने लगी
आज मैंने महसूस किया
प्रकृति ने भी प्रेम किया।


तारीख: 23.02.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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