प्रीत की डोर

मिलते है जिसमे सिर्फ अश्रु और गम 
फिर भी चूकते नही प्यार करते हैं हम 
हो कहीं भी सर्वत्र तुम दिखती प्रिये 
बनके तुम फूल बंजर में खिलती प्रिये
न मुरझाना कभी ए हृदयवासिनी
लगाले ज़माना चाहे कितना भी जोर 
रखना इसे संभाल ये है प्रीत की डोर |

मन ये बावरा हुआ एक तेरी ही धुन 
पछियाँ कह रहे जरा उनकी भी सुन 
मेरे तन मन पे है एक तेरा अधिकार
जो भी गम या ख़ुशी दे मुझे है स्वीकार 
रखूँगा बचा के हर मुश्किल से तुम्हे
दूंगा तुम्हे सबकुछ ,दिल में उठा ये शोर
रखना इसे संभाल ये है प्रीत की डोर |

कुछ ज़माने का सुन के बदलना नहीँ
जिस डगर न रहूँ उस पे चलना नही
अब तो हर एक जन्म तुम मेरे हुये 
जब पकड़ एक दूजे को फेरे लिए
जो लिए हैं वचन वो निभाना प्रिये 
चाहे कितनी भी ऊँगली उठे तेरी ओर 
रखना इसे संभाल ये है प्रीत की डोर |

तू नदी है मेरी मैं हूँ प्यासा पथिक 
प्यार कम तू करे तो करूँ मैं अधिक 
तेरे आँखों मैं हूँ मैं तो दिखता प्रिये
तेरी अश्कों के बीच हूँ खिलता प्रिये 
आये बरखा तो ये प्रेम बढ़ता रहे 
तू है सावन तो हूँ मैं सावन का मोर 
रखना इसे संभाल ये है प्रीत की डोर ||


तारीख: 10.06.2017                                    महर्षि त्रिपाठी









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