साक्षी प्रभात किरण , साक्षी धरा गगन
साक्षी निर्झर ,साक्षी ब्रह्माण्ड का कण कण
काल प्रवाह दर्पण स्वरुप " तरुणों से अनुमोदन मेरा "
प्रेम दर्शन का विषय हैं प्रदर्शन का नहीं
चन्द्रचकोरि, " सर्वदा प्रेम प्रतीक " दिनकर और सूर्यमुखी
भ्रमर पुष्प , "तरुण उधान भ्रमण " प्राकृत और लुकाछिपी
पशुवत सुखद ," सर्वदा" मानव नयन झुके झुके
पूजित ,सभीत ,चकित ,कुंठित " समाज से अनुमोदन मेरा "
प्रेम चिंतन का विषय हैं शासन और चितवन का नहीं
अनुशासित पतंग सा जग में तेरा उत्थान हो
डोर हैं जब तक धरा पर अस्तित्व सुरक्षित मान लो
टहनी चहुदिशि हरा भरा ,तना कटा सुख जाओगे
वंशज हो प्रताप के पद्मिनी के " जौहर " कैसे भूल पाओगे
सावित्री ,चंद्रमुखी , द्रौपदी, मंगलामुखी "बाँहों से अनुमोदन मेरा "
प्रेम अर्पण का विषय हैं तर्पण का नहीं
विश्व बंधुत्व के संरक्षक तुम , अग्रणी इस लोक में
मत करो कलंकित प्रेम को ,उन्माद में उपभोग में
मुस्कान या सजल नयन प्रेम संचित पुष्प हो संयोग में वियोग में
इंद्रा धनुष का रंग हैं ,बंधन नहीं स्वछंद हैं , आमोद में प्रमोद में
प्यासी ,तरसी, बरसी ,वहशी " आँखों से अनुमोदन मेरा"
प्रेम समर्पण का विषय हैं आकर्षण का नहीं