मुस्करा ले जिन्दगी, कि फिर ये शाम न होगी ।
ऐसी हसीन इश्क की अंजाम न होगी ।
हुस्न के मैखाने में प्यासे रह गये हम,
ऐ हसीन शायर, क्या तुझपे ये इलज़ाम न होगी ।।
हसीन होते हैं वो ख्वाब जिसमें तू आती है,
धीरे से, चुपके से मेरे कानों में कुछ फुसफुसाती है ।
बताती है कुछ मुश्किल सी तरकीब खुद को पाने की,
और खुद ही मुस्करा के दूर चली जाती है ।।
जंजीरों में इश्क कब जकड़ा गया,
मेरे दिल का कातिल कब पकड़ा गया ।
ठग थी वो मुझे ठग ही गयी,
और मैं अपने कत्ल के इलजाम में ही पकड़ा गया ।।
जिन्दगी में कभी ऐसा मंजर आया होगा,
किसी हसीन ख्वाब ने तुझे गुदगुदाया होगा ।
छुआ होगा किसी ने अपने अधरों से तेरे सुर्ख लाल गालों को,
किसी की याद ने तुझे फूट के रुलाया होगा ।।
तेरी नजरों में खुद को संवारती रही हूँ मैं,
तेरे लिए अपने हुस्न को निखारती रही हूँ मैं ।
तुझे क्या पता मेरे मुहब्बत की दास्ताँ,
तू जीत जाये मुझको, इसीलिए हारती रही हूँ मैं ।।
मेरे शहर पे तेरे नजरों की शाम नहीं,
इश्क के मैंखाने में तुझ जैसा हसीन जाम नहीं ।
तूने कत्ल की है मेरे चैनों शुकून का,
पर ऐ हुस्न, तुझ पे मेरा कोई इलजाम नहीं ।।