रिमझिम गिरे सावन
मन का सूखा पड़ा था जो
सदियों से
भीग जाये वह आंगन
एक प्रेम का बीज फूटे
फिर गीली मिट्टी से और
लद जाये फूलों से उपवन
सावन जो
बादलों की देश लौट जाये
साजन की याद फिर सताये
दिल प्रेम अगन में जल जाये
रूह का परिन्दा यादों की तपिश से
भस्म हो जाये
बहार भी पतझड़ में बदल जाये
आंख से ओस का मोती भी
एक मुर्झाये फूल सा
झड़ जाये
दिल की बगिया में खिलाने को
प्यार की फुहार
ओ प्रेम के पपीहा तू वापिस लौटकर क्यों न आये।