सबक

यदि सबक माना तो जी जाओगे
अन्यथा यूँ जीते जी मर जाओगे
द्वेष विराग मन कुपित मत करना
मन को इच्छाओं से दूर ही रखना
घनघोर घटाएं जानें कब बरसेंगी
निश्चित नहीं मन को तर कर देंगी
ऊसर नयनों के जल को पी लेना
मन संताप त्याग संतोषी जी लेना
नित वचन प्रवचन सिंघासन से आते
किन्तु अधिनायक कब पार लगाते
नाहक आशाओं का उछाह हैं भरता
रहे स्मरण, अपने मरे, स्वर्ग न मिलता
है नई संस्कृति नई रीत जगत की
विष पीना होगा यदि चाह अमृत की
कथनी करनी में समावेश समझना
हैं नादानों सा नादानी में पड़ना
जय विजय सदा स्वयं तय करना
अनुग्रह के द्वंद फन्द में क्या पड़ना
द्वेष विराग मन कुपित मत करना
मन को इच्छाओं से दूर ही रखना


तारीख: 18.04.2024                                    नीरज सक्सेना









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