कितना मैं अब दौड़ चुका हूँ,
आते तूफान मोड़ चुका हूँ!!
दो वक्त की रोटी खातिर,
भूख से नाता तोड़ चुका हूँ!!
जीवन की गिरहें सुलझाने में,
"वो" उलझी ज़ुल्फ़ें छोड़ चुका हूँ !!
गुलशन के गुलों की खातिर,
काटों से रिश्ता जोड़ चुका हूँ!!
कल शब की, आरजू-ए-शबनम में
आज हर क़तरा लहू निचोड़ चुका हूँ !!