सारा दिन ढोता है वो पत्थर
खाने को तब कुछ पाता है,
वो ठहरा एक श्रमिक साहब
कभी भूखा ही सो जाता है।
बदन तरबतर हुआ स्वेद से
लेकिन वह चलता जाता है,
जब काम नहीं मिलता है तो
वो गाली से पेट भर आता है।
हर रोज खड़ी करता बिल्डिंग
पर, पेड़ की छांव सो जाता है
अन्न की कीमत है मालूम उसे
पेट काटकर घर वो चलाता है।
जब काम तुम्हें तब मीठी वाणी
वरना मक्खी सा फैंका जाता है,
जिन्हें धन का गुमान, वो सुन लें
देश उसके कंधों से चल पाता है।