सिले होठ

मिले हम उनसे इस कदर पहली बार।
आँखों ही आँखों में हुआ था इज़हार।
उन्होंने सोचा की हम कुछ कहेंगे।
आँखों का इज़हार लफ्जों में करेंगे।

हम भी मजबूर थे अपनी जुबान से।
खड़े खड़े देखते रहे बेजुबान से।
रुक गया वक़्त वही कुछ पल के लिए।
और दोनों अपनी अपनी राह चल दिए।

नाराज़ हुए हम अपने अधूरेपन से।
ना मिला वो जिसे भी चाहा हमने मन से।
एक तो खुदा ने हमे जुबा से अपंग बना दिया।
ऊपर से दिल दिया और उसमे प्यार जगा दिया।

इस जुबान ने हमे यूँ मजबूर कर दिया।
कि हमने खुद को ही उनसे दूर कर दिया।
युही अकेलेपन में वक़्त गुजरता रहा।
बेजुबान मोहब्बत का जख्म युहीं भरता रहा।

वक़्त ने हमे उनसे एक बार फिर मिला दिया।
मोहब्बत का वही दर्द दिल में जगा दिया।
वो बोलते रहे और हम फिर खामोश थे।
किस्मत ने बीता कल फिर से दोहरा दिया।

उन्होंने हमसे ख़ामोशी की वजह पूछ डाली।
हमसे इस जफ़ा की सजा पूछ डाली।
अब युहीं कुछ क्या कहते जिसका कोई वजूद न था।
सच कह भी नही सकते थे और इसमें कुछ झूठ न था।

हमने भी कह दिया अपने सिले होठो से।
कि जज़्बात दिलों के हम कैसे तुम्हे बताएं।
खुद ही पढ़ लो इन बहते आंसूओ में।
जिन्हें थाम के रखा है कहीं हम बह न जाएँ।


तारीख: 20.06.2017                                    पंकज वर्मा









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