तह

कविता में 
काम का कुछ लिखने के लिए 
जब कोई अंदर बहुत गहरी
तह में चला जाता है।

उठा पटक करते हुए 
कोना कोना छान देता है
बहुत शोर मचाता है बेचैन होकर 
कुछ भी काम का न पा कर।

हार कर 
सर पकड़ लेता है अपना
बैठा रहता है बड़ी देर तक 
जर्द पड़े चेहरे को 
टूटते घुटनों पर टिकाए।

सोचता है कि 
वो इतने अंदर 
आखिर चला ही क्यों आया
तह में तो अक्सर कब्र होती है 
अनसुने जज़्बातों की।
 


तारीख: 01.03.2024                                    भावना कुकरेती









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