तिरंगा


मैं तिरंगा ,
केवल लाल किले से ही
नहीं बोलता हूं !

हर राष्ट्रीय पर्व की शुभ बेला में
चौराहे की लाल बत्ती पर
रोटियों की खातिर
रुकी गाड़ियों के
बंद शीशों को थपथपाते
मुझे हाथ में पकड़े
बच्चे की आँखों से भी
बोलता हूं !

हर विद्यालय के मंच पर
'तेरी मिट्टी में मिल जावां'
गीत की धुन पर नृत्य करते
पिरामिड बनाते बच्चों के हाथ में
लहराकर मिली तालियों की
गड़गड़ाहट से भी बोलता हूं !

किसी कालेज के फ्रीडम फैस्ट
में आज़ादी मांगती , ठहाके लगाती
अल्हड़ युवती के
गालों पर सजे तिरंगे
की टैटू बन उसके
दिल में बहते देशभक्ति
के झोंके से भी बोलता हूं!

माईनस तापमान की
जमी बर्फ के बीच ,
सरहद की किसी ऊंची
पहाड़ी की ओट से
हाथों में बंदूक थामे
सैनिक के सीने पर लगे तिरंगा बैज
के पीछे से आती दिल की धड़कनों
से भी बोलता हूं !

बाद छंटने के किसी स्वतंत्र गणतंत्र
के समारोह की वो हाई क्लास भीड़,
पार्कों, सभागारों को
व्यवस्थित कर सहेजते,
मंच की मेजों, कुर्सियों पर बिखरे पड़े,
मेरे अस्तित्व को,
झाड़,पोंछकर हाथ में दुलारकर,
मेरी सिलवटें दूर करते,
सफाई कर्मचारी के प्लास्टिक
बैग से भी बोलता हूं !

मैं तिरंगा,
केवल लाल किले से ही
नहीं बोलता हूं!


तारीख: 17.02.2024                                    सुजाता









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