बंधनों की देह में जब,
भाव सब निश्वास होंगे।
क्या प्रिय तब भी तुम्हारा,
प्रेम पर विश्वास होगा!!
चेतना की जलधि पर जब,
मेघ चिंता के घिरेंगे,
कहे वचन होंगे कटु जब,
मोती अश्रु बन झरेंगे,
प्रेम से झंकृत हृदय जब,
व्यथा का आवास होगा।
क्या प्रिय तब भी तुम्हारा,
प्रेम पर विश्वास होगा!!
ऊँचे अभिलाषाओं से,
जब कभी कर्तव्य होंगे,
मन विकारों से घिरेगा,
भिन्न से वक्तव्य होंगे,
भावनाओं में बही क्या,
प्रीत का विन्यास होगा।
क्या प्रिय तब भी तुम्हारा,
प्रेम पर विश्वास होगा!!
वंचनाओं से घिरुँ जब,
संग क्या तब भी रहोगे,
कुपित होगा मन कभी जब,
मान क्या मेरा रखोगे,
आवृत दुविधाओं से जब,
प्रेम का आकाश होगा।
क्या प्रिय तब भी तुम्हारा,
प्रेम पर विश्वास होगा!!
वेदना से, क्षोभ से प्रिय,
जब ग्रसित यह प्राण होंगे,
अवसाद से घिर कर कभी,
कष्ट जब अविराम होंगे,
कहे गये शब्दों में क्या,
सांत्वना का वास होगा।
क्या प्रिय तब भी तुम्हारा,
प्रेम पर विश्वास होगा!!
मौन भावों की अपेक्षा,
शब्द कहना व्यर्थ होगा,
प्रेम में लिये वचनों का,
तभी सार्थक अर्थ होगा,
प्रेम की चिर परीक्षा में,
सुख-दुख अनायास होगा,
क्या प्रिय तब भी तुम्हारा,
प्रेम पर विश्वास होगा!!