हकीकत

बाहर की
दुनिया से परे
और एक दुनिया है
मेरे भीतर।
वहाँ सब कुछ
स्वाभाविक होता है।
वह आइना की तरह
सब कुछ दिखा देता है।
छुपाने के लिए
वहाँ कुछ बचता ही नहीं
कोई दिखावा
नहीं चलता।
वहाँ कुछ है
जो कोसता है मुझे
हर दिखावे के लिए।
सच्चाई के राह पर
चलने का
हिदायत देते हुए
मुझे चेताता है
यहाँ कुछ भी
अपना नहीं है
सजग रहो
अपने आप को
दीन-हीन मत बनाओ
भीतर के चैतन्य को
जगाओ...
भीतर एक जागरण है
चैतन्य का
अद्भुत प्रकाश है
मैं उसी के उपासना में
निमग्न रहता हूँ
और मौन हो जाता हूँ।
बाहर की दुनिया तो
एक दिखावा है
एक धोका है।


तारीख: 14.02.2024                                    वैद्यनाथ उपाध्याय









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है