यादों का महल

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है

दीवारों पर टँगी तस्वीरों से मन बहलाते हैं...

सच-झूट  के  फर्क  को  भूल  जाते  हैं ...

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!!!!!!!

 

प्रष्नों के भॅवर में हम रोज़ गोते खाते हैं...

धोके की परत को रोज़ हटाते हैं...

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!!!!!!

 

भावनाओं के  कटघरे  में  रोज़  खड़े  पाते  हैं ...

खुद ही सज़ा हम  रोज़  फिर  सुनाते  हैं ....

खुद ही सज़ा हम रोज़ फिर सुनाते हैं ....

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!!!!

 

ये होता वो होता...इस दलदल में रोज़ फ़स्ते जाते  हैं......

सही गलत के मायाजाल से रोज़ खुद को सताते हैं.....

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!!!

 

खुद की ही सच्चाई हम बार-बार साबित करते  हैं...

रिश्तों की  डोर  बार-बार सुलझाते  हैं ...

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!

 

सपने  हज़ारो  हम  यही  बुनते  चले  जाते  हैं ....

मुस्कुराहटों  को  यूँ  ही  संजोते  जाते  हैं ....

अपने  परायों  का  फर्क   बार-बार भूल  जाते  हैं ....

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!

 

ये सांझ का साया है…..

या  अंधेर- रात  की  आहट..

या  फिर  सुनहरी  धुप  की  चाहत ...

हम  ना समझ  पाते  हैं   .. .

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!

यादों के महल में हम हर रोज़ जाते है!!!!!


तारीख: 18.04.2024                                    स्वाति जैन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है