सिंहगर्जित क्षितिज,
रक्तरंजित धरा,
प्राण अर्पित करने की,
कर्ण सी वह त्वरा
म्रत्यु से करते सुसज्जित
वीर देहों को परस्पर ।
अश्रुओं की माल लेकर
विजयी अग्नि थाल लेकर
सौम्य ऊषा काल लेकर
गोद में म्रत लाल लेकर
काँपती वसुधा कुमारी ,
अमर वीरों को स्मरण कर।
मात का उपहास करने,
क्रूरता का त्रास भरने,
नीच, निर्दयी, निरेलोभी शत्रु,
घर का नाश करने
आ रहे थे पंथ से जिस
द्रश्य होता न कहीं फिर
दिख रही बस वीर पूजा
दिख रहा भूषण न दूजा
दिख रहा बलिदान गहरा
तेज का घनघोर पहरा
युग को सुरभित कर गये हैं
क्षण में सुन्दर पुष्प गिरकर।