यूं तो होती है

यूं तो होती है  स्त्री कठोर,
लेकिन जज्बातों से सरोबार
खुद पिघल कर रोशनी देती,
अपना वजूद स्वयं लूटा देती। 
मोम की प्रतिमा बनकर जलती 
शमा बनकर खुद निश्वावर होती,
जब भी पड़ती रिश्तों में खटास
स्वयं को कर कुर्बान देती मिठास,
मोम की तरह है उसका जीवन,
खुद जलकर सारे जहां को कर देती महान्
टूटकर बिखरना आता उसे बखूबी,
संबंधों खो बारिकियों से पिरोनी की है खुबी।
यूं तो होती है स्त्री कठोर।
मोम की प्रतिमा बनकर जलती।


तारीख: 20.02.2024                                    रेखा पारंगी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है