फूफा जी जब छोटे थे तो वे एक दिन कुछ पिल्लों को रोटी खिलाने गए थे। वह उन्हें खिला ही रहे थे कि कुतिया वहाँ पहुँच गई और उन्हें काट लिया, जिससे उन्हें कुत्तों से नफ़रत ही हो गई । एक बार बुआ एक कुत्ता ले आई थी पर फूफा जी को जैसे ही पता चला, उन्होंने उसे कहीं दूर ले जाकर छोड़ दिया।
फूफाजी और बुआ हमारे साथ ही रहते थे। इस कारण हमें भी कुत्ता नहीं रखने देते थे। एक बार कि बात है। फूफा जी 3-4 महीनों के लिए अपने गाँव गए हुए थे। मैंने सोंचा कि यही सही मौका है। एक पिल्ला ले आया जाए और पाला जाए। जब फूफा जी आएंगे तो उन्हें कैसे भी मना लिया जाएगा। एक दिन स्कूल से आते समय मैं रास्ते से एक पिल्ला उठा लाया। उसके बाल कुछ-कुछ लाल रंग के थे, इसलिए सब उसे लालू ही बुलाने लगे। उसके रहने का इंतजाम घर के पिछवाड़े में एक ढाँचे में किया गया। मेरा टूटा हुआ लंच बॉक्स उसके खाने का बरतन बना। लालू एक बहुत ही निडर एवं फुर्तीला पिल्ला था। स्कूल से आते ही मैं उसके साथ खेलने लगता।
उसमें एक यही ख़राब आदत थी कि वह अकेले ही कहीं भी भाग निकलता था लेकिन मेरे स्कूल से आने से पहले ही लौट आता था एक बार पानी से भरे गड्ढे में गिर गया था तो बहुत मुश्किल से बचाया गया उसे। फिर भी उसने अपनी ये आदत नहीं छोड़ी। कुछ दिन बीते और मेरा जन्मदिन आ गया। मैं स्कूल से जैसे ही आया तो पता चला लालू नहीं आया हुआ था। मैं उसे खोजने निकल पड़ा। बहुत देर बाद वह एक जगह सोया हुआ दिखा। सामने जाकर देखा तो दिल बैठ गया और आँखों से आँसू निकलने लगे। लालू का शरीर खून और मिट्टी से सना हुआ था। एक लड़के ने बताया कि लालू सड़क के किनारे सोया हुआ था। तभी एक ऑटोरिक्शे से आगे निकलने के चक्कर में ट्रक वाले ने ट्रक को लालू के ऊपर ही चढ़ा दिया। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। बहुत गुस्सा भी आया। अगर वो ट्रक वाला आगे नहीं निकलता तो क्या आफ़त आ जाती? बस कुछ सेकंड बचाने के लिए उसने मेरे लालू को मुझसे छीन लिया। मैंने उस दिन अपना जन्मदिन नहीं मनाया। बहुत दिनों तक उसके घर को जाकर देखता कि कहीं उसमें लालू आ तो नहीं गया। भगवान करे कि वह फिर से आ जाए। पर लालू तो बहुत दूर जा चुका था। उसके शरीर को पापा पता नहीं कहाँ छोड़ आए थे क्योंकि मैं वहाँ से घर आ ही नहीं रहा था। आज भी लालू की याद आती है तो मन बहुत उदास हो जाता है।